बहन

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बहन की शादी को 6 साल हो गए हैं।

राकेश कभी उसके घर नही गया। होली दिवाली भइया दूज पर कभी- उसके मम्मी पापा जाते हैं।

राकेश की बीवी एक दिन राकेश से कहने लगी आपकी बहन जब भी आती है उसके बच्चे घर के हाल बिगाड़ कर रख देते हैं।

ख़र्च डबल हो जाता है

ख़र्च डबल हो जाता है और तुम्हारी मां हमसे छुप, छुपाकर कभी उसको साबुन की पेटी देती है कभी कपड़े कभी सर्फ के डब्बे।

और कभी कभी तो चावल का थैला भर देती है अपनी मां को बोलो ये हमारा घर है कोई ख़ैरात सेंटर नही।

यह बात सुनकर राकेश को बहुत गुस्सा आया राकेश बोला मैं मुश्किल से ख़र्च पूरा कर रहा हूँ और मां सब कुछ बहन को दे देती है।

बहन एक दिन घर आई हुई थी उसके बेटे ने टीवी का रिमोट तोड़ दिया जिसके बाद राकेश मां से गुस्से में बोला मां बहन को बोलो कि यहा भैयादूज पर आया करे बस।

और ये जो आप साबुन सर्फ और चावल का थैला भर कर देती हैं ना उसको बन्द करें सब।

मां चुप रही लेकिन बहन ने राकेश की सारी बातें सुन ली थी, बहन कुछ ना बोली
4 बज रहे थे

अपने बच्चों को तैयार किया और कहने लगी भाई मुझे बस स्टॉप तक छोड़ आओ राकेश ने झूठे मुँह कहा रह लेती कुछ दिन और लेकिन वह मुस्कुराई नही भाई बच्चों की छुट्टियां ख़त्म होने वाली है।

फिर जब दोनों भाईयों में ज़मीन का बंटवारा हो रहा था तो राकेश ने साफ़ इनकार किया भाई मैं अपनी ज़मीन से बहन को हिस्सा नही दूँगा।

बहन सामने बैठी थी।

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वह खामोश थी कुछ ना बोली मां ने कहा बेटी का भी हक़ होता है लेकिन राकेश ने गाली दे कर कहा कुछ भी हो जाये मैं बहन को हिस्सा नही दूँगा।

राकेश की बीवी भी बहन को बुरा भला कहने लगी। वह बेचारी खामोश रही।

राकेश का बड़ा भाई अलग हो गया । कुछ वक़्त बाद राकेश के बड़े बेटे को टीबी हो गई राकेश के पास उसके इलाज करवाने के पैसे नहीं थे राकेश बहुत परेशान था, एक लाख रुपया कर्ज भी ले लिया था।

राकेश बहुत परेशान था कमरे में अकेला बैठा अपने हालात पर रो रहा था।

उस वक़्त वही बहन घर आ गई राकेश गुस्से से बोला अब ये आ गई है मनहूस।

राकेश ने बीवी को कहा कुछ तैयार करो बहन के लिए तो बीवी राकेश के पास आकर बोली कोई ज़रूरत नही कुछ भी पकाने की इसके लिए।

फिर एक घण्टे बाद राकेश की बहन राकेश के पास आई भाई परेशान हो.? बहन ने राकेश के सर पर हाथ फेरा बड़ी बहन हूँ तुम्हारी।

अब देखो मुझसे भी बड़े लगते हो फिर राकेश के क़रीब हुई अपने पर्स से सोने की कंगन निकाले राकेश के हाथ में रखे और आहिस्ता से बोली पागल तू ऐसे ही परेशान होता है,

ये कंगन बेचकर अपना ख़र्चा कर बेटे का इलाज करवा।

शक्ल तो देख ज़रा क्या हालत बना रखी तुमने, राकेश खामोश था बहन की तरफ देखे जा रहा था वह आहिस्ता से बोली किसी को ना बताना कि कंगन के बारे में तुमको मेरी क़सम है।

राकेश के माथे पे बोसा किया और एक हज़ार रुपये राकेश को दिया जो सौ ,पचास के नोट थे शायद उसकी जमा पूंजी थी राकेश की जेब मे डालकर बोली बच्चों को कुछ खाने के लिए ला देना परेशान ना हुआ कर।

जल्दी से अपना हाथ राकेश के सर पे रखा देख तेरे बाल सफ़ेद हो गए वह जल्दी से जाने लगी उसके पैरों की तरफ़ राकेश ने देखा टूटी हुई जूती पहनी थी,पुराना सा दुपट्टा ओढ़ रखी थी जब भी आती थी वही दुपट्टा ओढ़ कर आती।

हम भाई कितने मतलब परस्त होते हैं बहनों को पल भर में बेगाना कर देते हैं और बहनें भाईयों का ज़रा सा दुख बर्दाश्त नही कर सकती।

वह हाथ में कंगन पकड़े ज़ोर ,ज़ोर से रो रहा था उसके साथ राकेश की पत्नी की आँखे भी नम थी।

अपने घर में भगवान जाने कितने दुख सह रही होती हैं।
कुछ लम्हा बहनों के पास बैठकर हाल पूछ लिया करें। शायद उनके चेहरे पे कुछ लम्हों के लिए एक सुकून आ जाये।

“दोस्तो बहनें मां का रूप होती हैं…!!”

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